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चुनाव, परिणाम, सोशल नेटवर्किंग, साम्प्रदायिकता, राजनीति, समाज और लोकतंत्र को लेकर बहुसंख्यक समाज के सदस्य के रूप मे मेर दृष्टिकोण, विचार और अपेक्षाएं

PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
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13.05.2014

सोशल मीडिया के माध्यम से राजनीति में जनता, विशेषकर युवाओं की भागीदारी की अभिव्यक्ति इतनी मुखर और प्रभावोत्पादक है कि इसे अनसुना कर पाना ठेठ देशी, गँवई और आधुनिक, हर श्रेणी के राजनीतिक दल और और नेता के लिये असंभव सा है। भाजपा द्वारा तमाम अंतर्कलह और अन्तर्विरोधों के बावजूद, वरिष्ठ और कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर गुजरात के दमदार नेता, नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को अपनी पार्टी और गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने में सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर परिलक्षित होते जनता, विशेषकर युवाओं के मिज़ाज के असर को अनदेखा नहीं किया जा सकता। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रभावी प्रदर्शन न कर पाने वाले दलों-गिरोहों-जमावड़ों द्वारा इनपर दिखाईं खिसियाहट भी इनकी महत्ता को ही रेखांकित करती है।

सोशल नेटवर्किंग साइट्स का देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा है और अब मतदाता अपनी स्थिर या यों कहेँ कि ज़ड़ और धर्म-जाति-समुदाय-क्षेत्र के दायरे मे कैद राजनैतिक प्रतिबध्दता से आगे बढ़कर सामयिक परिदृश्य मे अपने आँकलन के आधार पर पूर्वाग्रह-मुक्त हो मतदान करने की प्रवृत्ति पहले कि अपेक्षा अब अधिक दिखाने लगा है, चाहे वो किसी धर्म-जाति-सम्प्रदाय क हो। प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिये एक शुभ संकेत है और जातिगत-धार्मिक आधार पर तथाकथित सोशल-इंजीनियरिंग पर आधारित नेतागीरी, या यों कहें कि राजनैतिक ठेकेदारी को ठिकाने लगाने की दिशा मे महत्वपूर्ण और सकरात्मक भूमिका निभानेवाली है।

यदि राजग सत्ता मे आता है तो अपने राजनैतिक विरोधियों द्वारा साम्प्रदायिक ताकत के रूप में प्रचारित भाजपा और 2002 के गुजरात दंगों के लिये जिम्मेदार ठहराए जाते रहे नरेन्द्र मोदी के लिये यह एक बड़ी चुनौती और उतना ही बड़ा अवसर होगा इन आरोपों और और इनसे उपजी आशंकाओ को पूर्णतया गलत साबित करने का और समग्र सामाजिक समरसता पर आधारित अपने समावेशी राष्ट्रवाद के प्रदर्शन का! ऐसा होने पर मुस्लिम समुदाय मे उपजनेवाला आश्वस्ति का भाव भारतीय लोकतंत्र और समाज में धार्मिक आधार पर होनेवाले मतो के प्रायोजित और योजनाबद्व ध्रुवीकरण और परिणामी सामाजिक विभाजन पर नियंत्रण करने, उसे न्यून और फ़िर समाप्त करने मे बड़ी और प्रमुख भूमिका निभा सकता है।

देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के मन मे अपने प्रति गहरे बैठी और बैठायी गई आशंकाओ और भय को दूर करने मे सता मे आने की स्थिति मे राजग, विशेषकर भाजपा और मोदी कितने सफल होंगे, यह भले आनेवाला समय ही बताएगा, परन्तु होने की स्थिति में मुस्लिम साम्प्रदाय को भी आनेवाली सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को तमाम विभाजनकारी ताकतों द्वारा अब तक उपलब्ध कराये गये आशंका-भय-नफरत-पूर्वाग्रह के चश्मे से नहीं, मुक्त मन-मस्तिष्क से खुली आँखों से जाँचना-परखना और आँकना होगा। अल्पसंख्यकों को किसी आशंका से ग्रस्त होने से पहले इस बात को ध्यान मे रखना होगा और विश्वास करना होगा कि इस देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं का सामान्य चरित्र सदा से इतना सहिष्णु और उदात्त रहा है कि यह किसी धार्मिक चरमपंथ या कट्टरपंथ को प्रश्रय देने वाला नहीं। वैसे अटल बिहारी बाजपेयी जैसे हर दल और संप्रदाय मे स्वीकार्यता रखनेवाली नेता के बिना राजग और भाजपा नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सर्वजन की अपेक्षाओं के अनुसार काम कर पाये और देश के हर संप्रदाय-जाति-तबके के लोग इसे उसी प्रकार पूर्वाग्रह-मुक्त हो स्वस्थ दृष्टिकोण से स्वीकार कर पायें तो यह देश मे लोकतंत्र के लिये एक नयी शुरुआत होगी।

लोक और लोकतंत्र को शुभ-कामनाएँ !!

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