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उत्तर प्रदेश टीoईoटीo संघर्ष मोर्चा के संघर्ष ने दी बृहद पीठ के द्वार पर दस्तक Date 13 mqrch2013

PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
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30.11.2011 को जारी विज्ञापन की शर्तों के अनुसार केवल टेट-मेरिट से 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती की मांग को लेकर विचाराधीन मामले को कल इलाहाबाद उच्च न्यायालय की जस्टिस सुशील हरकौली और जस्टिस मनोज मिश्र की खंडपीठ द्वारा बृहत् पीठ को प्रेषित कर दिया गया जो एक अन्य खंडपीठ के 16.01.2013 के उस निर्णय पर पुनर्विचार के लिए गठित की गई है, जिसमे अध्यापक पात्रता परीक्षा न उत्तीर्ण करने वाले 50 फीसदी अंको के साथ स्नातक अर्हताधारी बी0एड0 अभ्यर्थियों को भी कक्षा 1 से 5 के अध्यापक के तौर पर नियुक्ति के लिए अर्ह मानते हुए राज्य सरकार को ऐसे अभ्यर्थियों को उस समय चल रही भर्ती- प्रक्रिया में शामिल करने के लिए तदनुसार संशोधन करते हुए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया गया था, । सम्भावना जताई जा रही है कि चीफ जस्टिस शिवकीर्ति सिंह, जस्टिस सुशील हरकौली और जस्टिस प्रदीप कुमार सिंह बघेल की बृहत् पीठ आनेवाले शुक्रवार को इन दोनों मामलो पर एक साथ विचार करेगी।

बताते चलें कि केवल टेट-मेरिट से 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती की मांग को लेकर विचाराधीन मामले में सुनवाई के शुरूआती दौर में ही खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दिया था कि ऐसे मामलो के सार-तत्व को दृष्टिगत रखते हुए उसके अनुसार न तो एकल पीठ द्वारा मात्र 30.11.2011 के विज्ञापन में “सहायक अध्यापक” के स्थान पर “प्रशिक्षु शिक्षक” शब्द के प्रयोग के कारण सरकार द्वारा उसे गलत मानकर रद्द किये जाने को सही ठहराया जाना जा सकता है और न ही राज्य सरकार द्वारा किसी चल रही चयन-प्रक्रिया को मात्र चयन के आधार को उसके मतानुसार बेहतर करने के नाम रद्द करने को उचित और वैध ठहराया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि राज्य सरकार के इस कृत्य को स्वीकार करने की स्थिति में यह भविष्य में सरकार और उसके किसी भी अधिकारी द्वारा चयन का आधार बेहतर करने के नाम पर किसी भी प्रक्रिया को किसी भी चरण में रद्द कर देने का आधार प्रदान कर देगा। सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा UPTET-2011 में तथाकथित रूप से हुई धांधली के आरोप के आधार पर ऐसा निर्णय लिए जाने की बात कहे जाने पर भी पीठ ने ऐसे आरोपों की सम्यक जांच और साक्ष्य पाए जाने की स्थिति में भी केवल दोषियों को प्रक्रिया से बाहर किये जाने की जरुरत बताते हुए इस आधार पर समूची प्रक्रिया को रद्द करने को गलत ठहराया था। इसके बाद की सुनवाइयों के दौरान उन्होंने सरकार द्वारा तथाकथित धांधली के आरोपों की जांच के लिए गठित उस्मानी हाई पावर कैप्सूल, माफ़ कीजियेगा, कमेटी की रिपोर्ट को पूर्णतया सतही दृष्टिकोण के साथ कही-सुनी बातों के आधार पर तैयार किया गया मानते हुए सरकार से, यदि उसके लिए संभव हो, तो अन्य साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा जिसके जवाब में सरकार कुछ भी प्रभावी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाई और कल की सुनवाई के दौरान पीठ द्वारा सरकार की दलीलों को पूरी तरह खारिज किये जाने के बाद याचियों के पक्ष में फैसला आने की पूरी सम्भावना बनी हुई थी।

हमारे कुछ साथी इस स्थिति से और इसके जिम्मेदार लोगो से निराश और नाराज़ दीखते हैं पर यहाँ इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता नॉन-टेट वाले केस का निर्णय पुराने विज्ञापन को नहीं, स्वयं NCTE की 23.08.2010 की अधिसूचना को प्रभावित करने की स्थिति में है। जब यह उसपर प्रभाव डालता है तो उस से शासित होने वाली किसी भी भर्ती-प्रक्रिया, जो पूर्ण नहीं हुई है, को इसके दायरे से बाहर बताना स्वयं को बहलाने जैसा है। यह एक अलग बात है कि नॉन-टेट वाले मामले में टेट से किसी को छूट मिलने की कोई सम्भावना नहीं है, जस्टिस अमरेश्वर प्रसाद शाही ने 8 मार्च 201 3 (रिट ए 12908/2013) के आदेश में इस बात की पूरी व्यवस्था कर दी है कि खंडपीठ द्वारा नॉन-टेट को शामिल किये जाने का निर्देश कभी भी कार्यरूप में परिणत न हो सके।

कुछ साथी नॉन-टेट वाले मामले से पुराने विज्ञापन को इस आधार पर सुरक्षित मान रहे हैं कि हमारे मामले में टेट एक अनिवार्यता के रूप में नहीं, एक प्रतिस्पर्धी परीक्षा के रूप में स्वीकार्य, सुरक्षित और वैध होगा, पर यह स्वयं को धोखे में रखना होगा। ध्यान दें कि किसी परीक्षा की उपयोगिता या उद्देश्य या स्वरुप उसके विज्ञापन में होने चाहिए और UPTET-2011 के विज्ञापन में इसे NCTE की अधिसूचना और दिशानिर्देश के अनुसार आयोजित होने वाली पात्रता परीक्षा बताया गया था, जिस के अंको को भर्ती प्रक्रिया में NCTE के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा 100% वेटेज दिए जाने का प्रावधान 12वें संशोधन के द्वारा किया गया था। आशय यह है कि बिना कारण के आशंकाग्रस्त होकर एक चिकनी चट्टान पर टिकने की कोशिश की कोई आवश्यकता नहीं है, उनके लिए तो और नहीं, जो पहले से ही एक पूरी तरह से मजबूत जमीन पर खड़े हों।

हमारे कुछ भाई अशोक खरे द्वारा नॉन-टेट का मुद्दा उठाये जाने से भी नाराज़ है और जस्टिस हरकौली द्वारा बृहत् पीठ को यह मामला संदर्भित किये जाने पर भी सशंकित है, पर क्या इस से यह सुनिश्चित नहीं होता कि जब नॉन-टेट वाले मुद्दे की सुनवाई होगी तब सरकार द्वारा अपना पक्ष कमजोर या गलत ढंग से रखे जाने या हमारे मामले से उस मामले को जोड़े जाने की कोशिश किये जाने की स्थिति में हमारे वकील प्रतिकार करने और हमारा पक्ष रखने को मौजूद रहेंगे। जस्टिस हरकौली ने अपने कल के आदेश में स्पष्ट किया है कि जब बृहद पीठ में एक अन्य विचाराधीन मामले में इसी प्रश्न का निपटारा हो रहा है कि क्या अध्यापक के तौर पर नियुक्ति के लिए बिना टेट के किसी व्यक्ति को शामिल किया जा सकता है या नहीं, तब स्वाभाविक है कि टेट-मेरिट से भर्ती चाहने वाली याचियों की याचिका पर निर्णय तब तक नहीं दिया जा सकता, जबतक उसका निपटारा न हो जाये। साथ ही जस्टिस हरकौली के लिए कल निर्णय देना इसलिए भी संभव नहीं था क्यूंकि, बृहद पीठ द्वारा नॉन-टेट वालों को अनुमति देने की स्थिति में टेट-पास याचियों के टेट-स्कोर के सापेक्ष रखने के लिए नॉन-टेट अभ्यर्थियों के पास टेट-स्कोर ही नहीं होगा। भले ही स्वाभाविक रूप से सभी जानते हैं कि नॉन-टेट को बृहत् पीठ से कोई राहत नहीं मिलने वाली, पर स्वयं बृहद पीठ द्वारा इसकी घोषणा होने तक प्रतीक्षा करनी ही होगी।

साथ ही यह भी ध्यान में रखना जरुरी है कानूनी तौर पर जब कल की तारीख में एक खंडपीठ द्वारा नॉन-टेट को शामिल किये जाने का निर्णय जीवित है, (जिसकी मृत्यु निश्चित तो है, पर हुई नहीं). उनके द्वारा टेट-मेरिट से भर्ती का निर्णय देना स्पष्ट रूप से उसके विपरीत जाता और बृहत् पीठ द्वारा निर्णय किये जाने तक एक न्यायिक विसंगति बना रहता, जिस से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया। पर क्या इस से यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि निश्चित तौर पे उनका फैसला टेट-मेरिट से ही भर्ती के पक्ष में है अन्यथा याचिका ख़ारिज किये जाने का निर्णय सुनाने के लिए उन्हें न किसी अन्य निर्णय की परवाह करनी थी न ही मामला बृहत् पीठ को संदर्भित करने की। उनके द्वारा ऐसा करने का एक और नितांत नैतिक कारण भी था। एक जज, जो टेट-मेरिट से भर्ती का आदेश दे चुका हो, जब टेट की आवश्यकता पर विचार करने बैठेगा तो इस मामले में उसके कार्य को विचार करना नहीं, मखौल कहेंगे क्यूंकि इस मामले में उसका मत सुनवाई के पहले ही सबको ज्ञात होगा। अतः बृहत् पीठ द्वारा होने वाली सुनवाई को एक मखौल का रूप लेने से बचाने के लिए भी उनका ऐसा करना आवश्यक था। नॉन-टेट में फैसला क्या आना है, पहले से स्पष्ट है, पर जब जस्टिस शाही जैसे विद्वान ने खंडपीठ की मुहर लगने तक इसकी घोषणा नहीं की है तो हम भी थोड़ी प्रतीक्षा कर लें, तो बेहतर होगा।

कुछ लोग नॉन-टेट के मुद्दे में नॉन-टेट की ओर से अशोक खरे द्वारा बहस किये जाने की बात कर रहे है। मैं स्पष्ट कर दूं कि जस्टिस शाही द्वारा बृहत् पीठ को भेजा गया मामला प्रभाकर सिंह या सम्बंधित याचियों का नहीं, एक नॉन-टेट सहायक अध्यापक का है जिसे पहले मृतक आश्रित के रूप में नौकरी दी गई और बाद में NCTE की अधिसूचना और टेट की अनिवार्यता का हवाला हुए उसे नौकरी से निकालने की शुरुआत करते हुए विभाग द्वारा कारण-बताओ-नोटिस जारी किया गया। अपनी नौकरी बचाने के लिए खंडपीठ द्वारा टेट की अनिवार्यता से राहत देने वाले आदेश के आधार पर प्रयासरत इस व्यक्ति को और से एकल पीठ में श्री आदर्श भूषण ने पक्ष रखा था, इसलिए फिलहाल खरे जी परिदृश्य में नहीं है। प्रभाकर सिंह वाले मामले में भी खरे जी ने BTC-2010 को टेट से छूट दिए जाने की वकालत की थी बी0एड0 वालों को नहीं।

वैसे रोज रोज अलग अलग सुनवाई से बेहतर है की इस मामले की सुनवाई बृहत् पीठ में होनी है जो सिर्फ हमारे मामलो की सुनवाई के लिए बनी है और वह जब भी बैठेगी, बिना नंबर का इंतज़ार किये, अपने मामले ही सुने जायेंगे। इस से बेहतर वी0 आई0 पी0 ट्रीटमेंट भला हाईकोर्ट की खंडपीठ आपको क्या दे सकती थी?

कुछ लोगों को बहुत पहले से खंडपीठ द्वारा नॉन-टेट को शामिल किये जाने का निर्णय दिए जाने के बाद भी इसके प्रभावी न हो पाने का तर्कसंगत विश्वास था, जो कि आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।

नॉन-TET मामले से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण पोस्ट, जो हमारे ग्रुप-मेंबर भाई विक्रम यादव, इटावा, द्वारा 24.02.2013 को की गई थी, के महत्वपूर्ण अंश को इस विषय पर किसी भी प्रकार की शंका से ग्रसित मित्रों के ध्यानार्थ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ। मैंने पहले भी इस पोस्ट को लगभग पूर्णतया सही माना था और आज Civil Misc. Writ Petition No. 12908 of 2013 (Shiv Kumar Sharma Vs. State of U.P. and others) मामले में जस्टिस अमरेश्वर प्रसाद शाही द्वारा 08.03.2013 को दिए गए आदेश के आलोक में पुनः प्रासंगिक समझता हूँ।

दिनांक 24 फ़रवरी 2013 को भाई विक्रम यादव द्वारा ग्रुप पर पोस्ट के अंश:

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“शिक्षा का अधिकार अधिनयम 2009 लागू होने के बाद बेसिक शिक्षा मेँ गुणात्मक सुधार के लिये NCTE को प्रदत्त शक्तियाँ मिली जिसके द्वारा NCTE ने अपनी 23 अगस्त 2010 की मूल अधिसूचना मे क्वालिटी एजूकेशन के लिये एक सुद्रढ़ ढ़ाचा तैयार किया जिसके लिये 23 अगस्त के नोटिफिकेशन मेँ पैरा 1 मेँ कक्षा 1 से5 के अध्यापक पद पर नियुक्ती के लिये तथा पैरा 2 मेँ कक्षा 6 से 8 के अध्यापक पद पर नियुक्ती के लिये आवश्यक न्यूनतम शर्तेँ हैँ।

पैरा 1 तथा पैरा 2 मेँ किसी व्यक्ति के अध्यापक पद पर नियुक्ती के लिये न्यूनतम योग्यता के दो खण्ड हैँ पहला है न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तथा दूसरा खण्ड टैट पास होने की अनिवार्यता। पैरा 3 मेँ दिये गये बीएड वाले वास्तव मे पैरा 1 (कक्षा 1से 5 के अध्यापक) मेँ दी शैक्षणिक योग्यता बीटीसी तथा अन्य की वैकल्पिक शैक्षणिक योग्यता है और यह छूट 1 जनवरी 2012 तक के लिये हैँ। इसलिये पैरा 3 मेँ ये कोई अनिवार्यता नहीँ रह जाती कि वहाँ भी टैट का वर्णन होँ।क्योँ कि कक्षा 1से5 तक अध्यापक पद पर नियुक्ती के लिये अन्य अर्हता अर्थात टैट पास होना पैरा 1 के अनुरुप रहेगा। बीएड वालोँ को 1से 5 तक के अध्यापक पद के लिये पैरा 1 मे न रखकर पैरा 3 मेँ अलग रखा गया क्योँ कि यह छूट 1जनवरी 2012 तक है। इस समय सीमा के बाद पैरा 3 का अस्तित्व समाप्त हो जाना है।यह है कानूनी शब्द “हारमोनियस कंसट्रक्शन” के सिद्धान्त के अनरूप व्याख्या!

अब बात करे NCTE की सोच की तो NCTE ने 11 फ़रवरी 2011 को टैट आयोजित कराने के सम्बन्ध मेँ गाइडलाइन जारी की। इसमेँ 1 से 5 कक्षा तक के टैट मेँ बैठने के लिये बीएड वालोँ को जनवरी 2012 तक पात्र माना गया। यह नोटिफिकेशन समस्त राज्योँ को प्रेषित किया गया। इस गाइडलाइन के क्रम मेँ सबसे पहले CBSE द्वारा सी टैट का आयोजन कराया गया जिसमेँ बीएड वाले प्राथमिक स्तर के टैट मेँ बैठे और उन्हेँ प्रमाण पत्र भी दिया गया।इसके बाद राजस्थान मेँ थर्ड ग्रेड टीचर अर्थात प्राइमरी टीचर के लिय प्राथमिक स्तर के टैट का आयोजन कराया गया जिसमेँ बीएड वाले बैठे और टैट पास बीएड वालोँ कक्षा1से5 के 27000 पदोँ पर नियुक्त किया गया। इसके बाद पंजाब, बिहार, हरियाणा, असम आदि द्वारा 1 से 5 का टैट आयोजित कराया गया जिसमेँ बीएड बाले बैठे और उनकी नियुक्तियाँ हुयीँ। केन्द्रीय विधालय संगठन द्वारा चंडीगढ़ SSA की भर्तियाँ निकली जिसमेँ 1से5 तक अध्यापक पद पर सीटैट पास बीएड वालोँ को नियुक्त किया गया। अगर बीएड वालोँ को टैट पास करने की आवश्कता नहीँ थी तो टैट मेँ बैठने से क्योँ नहीँ रोका गया और नियुक्तियाँ क्योँ नहीँ रोकी गयी । क्योँ कि NCTE द्वारा टैट सबके लिये अनिवार्य था।अन्तर इतना था कि NON-TET वाले केस मेँ यदि डीबी मेँ हरकौली जी होते तो वो सार तत्व पर ध्यान देते । अब अगर उत्तरप्रदेश की बात करे तो मायावती सरकार ने टैट से छूट के लिये 3या 4 बार लैटर लिखा गया लेकिन NCTE द्वारा छूट नहीँ दी गयी।अन्ततः टैट कराना ही पड़ा। जनवरी 2012 तक आते नियुक्तियाँ नहीँ कर पायी। पैरा 3 की छूट समाप्त हो गयी।

अब कहानी शुरु होती है बीएड वालोँ के लिये दूसरे अध्याय की! उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2012 के बाद NCTE से पुनः छूट के लिये 6जुलाई 2012 को पत्र लिखा गया। क्योँ कि 1 जनवरी 2012 के बाद पैरा 3 की छूट खत्म हो गयी। 2012 के बाद पुनः बीएड वालोँ के लिये नये नोटिफिकेशन की आवश्यकता थी।इसके लिये NCTE द्वारा sep 2012 को नया नोटिफिकेशन निकला । लेकिन इस बार नये नोटिफिकेशन “भारत सरकार का राजपत्र असाधारण ” मेँ स्पष्ट किया गया कि समय सीमा तो 31 मार्च 2014 तक बढ़ा दी जाती है लेकिन शर्त यह होगी कक्षा 1 से 8 तक के अध्यापक पद पर नियुक्ती के लिये ऐसे किसी व्यक्ति पर विचार नहीँ किया जायेगा जो टीईटी उत्तीर्ण नहीँ हैइस प्रकार 2012 के बाद NCTE द्वारा जारी नये नोटिफिकेशन ने बीएड बालोँ के बिना टैट के नियुक्ती की बची -खुची सम्भावना समाप्त कर दी।”

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इस से पहले मैंने भी इस विषय पर अपनी अल्प-बुद्धि से 21.02.2013 को अपनी एक पोस्ट लिखा था जिसका अंश आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है;

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एक अन्य खंडपीठ द्वारा एक अन्य मामले में B.Ed.+Graduate (with 50%) गैर-TET अभ्यर्थियों को इसी भर्ती में शामिल किये जाने सम्बन्धी निर्णय की चर्चा का न तो अभी अवसर है और न अवकाश! संक्षेप में केवल इतना समझ लें कि खंडपीठ के उस आदेश की सत्यापित-प्रति लिए कोर्ट-कोर्ट घूम रहे गैर-TET अभ्यर्थियों को इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल कराने को लेकर किसी भी पीठ ने रूचि और तत्परता नहीं दिखाई है, बल्कि एक पीठ ने तो खंडपीठ के निर्णय की ऐसी व्याख्या कर दी है वो बेचारे ऐसे बाजीगर साबित हो गए जो जीत कर भी हार गए। वो खुद को असल में “ठगा हुआ-सा” पा रहे हैं।

असल में NCTE की किसी भी अधिसूचना का वो अर्थ, खासतौर से तब जब वो स्पष्ट रूप से लिखा भी न हो, नहीं निकाला जा सकता या ऐसा कोई प्रावधान स्वीकार नहीं किया जा सकता जो देश की संवैधानिक योजना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के प्रतिकूल हो। और कक्षा 1-5 के लिए शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता के मामले में मौलिक रूप से पूर्णतया अर्ह BTC अभ्यर्थियों को TET-उत्तीर्ण न होने के कारण बाहर रखना, और केवल BTC अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता की स्थति में कक्षा 1-5 में शिक्षण के लिए एक काम-चलाऊ विकल्प के तौर पर स्वीकार्य अभ्यर्थियों, खासतौर से जिनकी शैक्षणिक योग्यता को कक्षा 1-5 के अध्यापक के लिए स्पष्ट रूप से BTC से कमतर मानकर उसे BTC की समकक्षता प्रदान करने के उद्देश्य से खासतौर से नियुक्ति-उपरांत 6-महीने का अनिवार्य प्रशिक्षण दिए जाने की शर्त रखी गई हो, को TET से छूट देना न सिर्फ BTC अभ्यर्थियों को संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मिले “अवसर की समानता के मौलिक अधिकार” का हनन होगा, बल्कि यह “योग्य पर अयोग्य को वरीयता” का एक उदहारण होगा। तब तो और भी, जब TET, की नाम से ही स्पष्ट है, NCTE द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसार एक ऐसी अनिवार्य अर्हता है जिसके बिना किसी भी व्यक्ति की नियुक्ति कक्षा 1-8 तक के अध्यापक के तौर पर नहीं हो सकती और केंद्र सरकार भी TET से किसी राज्य को छूट देने का अधिकारी नहीं है।

ऐसे में जब इस मामले को, इस निर्णय को NCTE की अधिसूचना में विहित और निहित भावना, उद्देश्य और आशय को अनदेखा केवल उसमे लिखे शब्दों के आधार पर छिद्रान्वेषी और सतही दृष्टिकोण से नहीं देखा जायेगा, बल्कि संविधान और प्राकृतिक न्याय की कसौटी जायेगा तो सारा भ्रम स्वतः दूर हो जायेगा। यदि किसी को मामले को ज्यादा बेहतर तरीके से समझना हो तो किसी अच्छे कानूनी एन्साइक्लोपीडिया में ”Harmonious Construction” (समन्वयपरक व्याख्या) का मतलब देखिये और उसके आलोक में NCTE की 23.08.2010 की अधिसूचना ध्यान से पढ़िए, सत्य का साक्षात्कार हो सकता है, शर्त केवल निष्पक्ष दृष्टिकोण की है। बची-खुची शंका का समाधान NCTE द्वारा 11.02.2011 को जारी TET-दिशानिर्देश से हो जायेगा।
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इसलिए इस बात को लेकर निश्चिन्त रहिये, शायद जिस दिन बृहद पीठ से निर्णय आएगा वह दिन न सिर्फ आपकी टेट-मेरिट के आधार पर आपकी नियुक्ति सुनिश्चित करेगा बल्कि यह भी तय करेगा कि आने वाले दिनों में भी कोई गैर-टेट व्यक्ति आपके बराबर में एक अध्यापक के रूप में कार्य न कर पाए।

(जस्टिस शाही के आदेश का विवरण अगली क़िस्त में)

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