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July 9th 2012 Brief on Supreme Court Legal Service Committee

PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
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उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती के मामले में सुप्रीमकोर्ट से राहत पाने का सर्वसुलभ तरीका
सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी (सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति)

(भाइयों, धरना-प्रदर्शन भी लोकतंत्र में न्याय पाने या अपनी मांग मनवाने का एक आजमाया हुआ हथियार है पर उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती के मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत पाने के इच्छुक मित्र इस जानकारी से लाभ ले सकते हैं. अगर वे सच में कुछ करना चाहते हैं मगर खर्च और जानकारी के अभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहें हैं तो यह रास्ता उनके लिए सर्वोत्तम है पर अगर केवल बातें करना और दूसरों के भरोसे बैठे रहना है तो उनकी मदद कोई नहीं कर सकता)

जनसामान्य में एक सर्वमान्य मान्यता है कि किसी मामले में राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना एक आम आदमी या किसी जमीन से जुड़े आदमी के बस की बात नहीं है जो कि सर्वथा भ्रम है. सुप्रीम कोर्ट तक जनसामान्य की पहुँच को आसान और कम खर्चीला (लगभग नगण्य) बनाने के उद्देश्य से “लीगल सर्विस अथोरिटीज एक्ट, 1987” के द्वारा सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी का गठन किया गया है.
मुफ्त कानूनी सहायता (मुफ्त वकील और न्यायालय शुल्क से से छूट) पाने के लिए समिति तक आप इन मामलों में जा सकते हैं:
१. सुप्रीम कोर्ट में कोई केस फाइल करने या खुद पर दायर किसी केस में बचाव करने के लिए जिनमे शामिल हैं,
अ. हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अपील / विशेष अनुमति याचिका (सिविल/क्रिमिनल)
ब. मौलिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध याचिका, जिसमे सरकार द्वारा “उठाये गए किसी कदम” या “कोई कदम न उठाने की” वैधता को चुनौती दी गई हो या सरकार द्वारा जारी किसी आदेश या या कानून की वैधता को चुनौती दी गई हो, जिनसे आपके किन्ही मौलिक अधिकारों का हनन होता हो.
स. किसी केस को भारत में एक राज्य से अन्य राज्य में लाने के लिए याचिका
द. अपनी किसी समस्या पर कानूनी सलाह पाने के लिए.

ध्यान दें कि मुफ्त कानूनी सलाह पाने के लिए कोई इलिजिबिलिटी क्राइटेरिया नहीं है.
जबकि मुफ्त कानूनी सहायता पाने के लिए पहले तो आपको इन वर्गों में से किसी एक से सम्बंधित होना चाहिए:
अनुसूचित जाति या जनजाति, महिला, बच्चा, विकलांग, कोई ऐसा व्यक्ति जिसकी वार्षिक आय 125000/- से कम हो.
दूसरा, समिति को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि आपके केस में तर्कसंगत होने के कारण जीत के अच्छे आसार है. इस कारण, कोई भी व्यक्ति आराम से कम से कम आवेदन तो करे, यदि समिति के विशेषज्ञ आपके पक्ष से सहमत होंगे तो आधी लड़ाई तो आप ऐसे ही जीत जायेंगे.
व्यापक जनहित के मुद्दे और विशेष मामले, जिनके लिए लिखित में कारण दिए जाने चाहिए, मुफ्त कानूनी सहायता के लिए उपयुक्त माने जा सकते हैं.

इसके लिए आपको साधारण रूप से आवेदनपत्र और संलग्नक (जो समिति की वेबसाईट http://sclsc.nic.in/) पर तथा मेरे पास और मुस्कान जी के पास उपलब्ध हैं) के साथ-साथ सारे सम्बन्धी दस्तावेज (उदहारण के लिए अगर आप हाईकोर्ट के किसी आदेश के खिलाफ अपील करना चाहते हैं तो उस आदेश और उसके सभी संलग्नकों की प्रतियाँ) समिति को भेजने होंगे.
जबकि मुफ्त कानूनी सलाह के लिए आप किसी भी कार्यदिवस में सुबह १०:३० से सायं ५:०० बजे तक फोन कर सकते हैं या पत्र द्वारा सलाह ले सकते हैं जिसका जवाब आपको १५ दिन के अन्दर समिति से मिल जायेगा. ई-मेल से प्रेषित प्रश्नों का उत्तर जल्दी मिल जाता है. कानूनी सलाह पूर्णतया निशुल्क है.

समिति सुपीम कोर्ट के एक जज की अध्यक्षता में भारत के चीफ जस्टिस के द्वारा मनोनीत विशेषज्ञों की समिति है. समिति के पास अनुभवी वकीलों का एक पैनल होता है जो दस्तावेजों की स्क्रीनिंग करते है, तथा कोर्ट में केस लडते हैं. इसके अलावा समिति में एक कानूनी सलाहकार-सह-एक्जीक्यूटिव होता है जो फोन/पत्र/मेल द्वारा मांगी गई जानकारियां और सलाह देता है तथा दस्तावेजों की जांच करता है. भले ही कानूनी सहायता के इच्छुक व्यक्ति को उसका मनचाहा वकील न मिले पर समिति इस बात को तय करती है कि केवल काबिल वकील या वक्कीलों का समूह उस केस को हैंडल करे.
आपके आवेदन के १५ दिनों के अन्दर समिति आपके भेजे दस्तावेजों के आधार पर तथा आपके आवेदन में दिए गए विवरण के आधार पर तय करती है कि आप जरूरी शर्तें पूरी करते हैं या नहीं और आपको मुफ्त कानूनी सहायता दी जाएगी या नहीं और आपको लिखित रूप से समिति के निर्णय से अवगत करा दिया जाता है. इस से सहमत न होने पर आप समिति के अध्यक्ष से अपील कर सकते हैं.
आपकी मुफ्त कानूनी सहायता का आवेदन स्वीकार होने की स्थिति में आपको समिति द्वारा भेजा गया वकालतनामा और हलफनामा हस्ताक्षर करके तथा हलफनामा नोटरी करा के भेजना होता है. इसी बीच आपका केस लड़ने के लिए समिति द्वारा निश्चित किया गया अधिवक्ता याचिका का ड्राफ्ट तैयार करता है और आपका हलफनामा और वकालतनामा तैयार होकर वापस आते ही आपकी और से केस सुप्रीम कोर्ट में फाइल कर देता है और केस में आपकी और से बहस करता है. आपको भी आपके केस से सम्बंधित अधिवक्ता का नाम बताया जाता है और आपकी और से कोर्ट में दाखिल दस्तावेजों की प्रतियाँ भेजी जाती हैं. अत्यंत विशेष परिस्थितियों में आपके अनुरोध पर समिति किसी वरिष्ठ अधिवक्ता को भी आपका केस हैंडल करने को कह सकती है. आपका अधिवक्ता आपसे संपर्क में रहता है और समय समय पर आपकी केस के बारे में जानकारी देता रहता है और जरूरी कागजातों के लिए मांग कर सकता है. इस प्रकार आप घर बैठे मुफ्त में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी राहत पा सकते हैं.

समिति का पता है,
The Secretary
Supreme Court Legal Services Committee
109, Lawyers’ Chambers
Supreme Court Compound,
New Delhi – 110 001.
Ph. Nos.23388313, 23073970, 23381257 e-mail : sclsc@nic.in
आशा ही नहीं विश्वास है कि यह जानकारी कुछ मित्रों में जोश भरेगी और कुछ मित्र इस दिशा में प्रयास करेंगे. कम से कम इस मुद्दे पर कानूनी सलाह के लिए तो हर कोई फ़ोन कर सकता है, मेल कर सकता है, पत्र लिख सकता है, समिति भी जब इतने आवेदन एक साथ देखेगी तो उसे भी इस मामले पर विशेष ध्यान देना होगा. अगर जरुरी समझे तो दिल्ली में मौजूद साथी समिति के दफ्तर जाकर भी जानकारी कर सकते है, दोस्तों, हर मोर्चे पर लड़ाई लड़ोगे तभी किसी मोर्चे पे फतह हासिल हो पायेगी.
आशा है, जानकारी पसंद आएगी, अपनी राय जरूर दें.

आपका
श्याम देव मिश्रा
मुंबई

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P. S.: This Article is written by SHYAM DEV MISHRA over the litigation regarding the Recruitment Process of 72825 Primary Trainee Teachers in schools of Basic Shiksha Parishad, Uttar Pradesh and Teachers Eligibility Test (TET/UPTET-2011).
The view expressed in the artile is solely of the writer and it is solely upon the conscience and discretion of the reader to regard or disregard in context of or with relevance to any specific case or in general. Writer shall not be liable for the consequences arising of an action taken on reliance of the views expressed hereinabove.
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